गुरु कुम्हार शिष कुंभ है,
गढ़ि – गढ़ि काढ़ै खोट।
अन्तर हाथ सहार दै,
बाहर बाहै चोट॥

यानी
सदगुरु बड़ा दयालु है।
वह अपने प्रेमियों पर पल पल दया की बरसात करता रहता है।
जब प्रेमी के पैरों के नीचे काँटा आता है तो गुरु वहां अपना हाथ लगा देता है।
गुरु किसी क़ाबिल कुम्हार की मानिंद जब अपने शिष्य को सँवारने के लिए बाहर से चोट देता है, अंदर अपना स्वयं का हाथ लगा कर सारे दर्द स्वयं सह लेता है।



  • Jai Gurudev 🙏🏼
  • Jaigurudev
  • Jaigurudev
  • 🙏
  • जय गुरुदेव

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