जयगुरुदेव।
सदगुरु तुम पर पल पल दया कर रहा है। कृपा कर रहा है। पर तुम उसे अनुभव नहीं कर पाते। उसकी मेहर फ़िज़ाओं में बिखरी हुई है।तुम्हारे जीवन में चहुं ओर थिरक रही है। महसूस कर के तो देखो। तुम सदगुरु की कृपा को सिर्फ़ भौतिकता से जोड़ कर देखते हो, पदार्थ से जोड़ कर देखते हो। ये तो बेहद ग़लत पैमाना…

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