जयगुरुदेव।

कल्पेश भाई पटेल तक़रीबन पैंतालीस साल से अमेरिका में रहते हैं। पहले नौकरी करते थे। अब कई कम्पनियों में सलाहकार के रूप में काम करते हैं। इस समय बॉस्टन में रहते हैं। तक़रीबन तीन बरस पहले उनकी मुलाक़ात सदगुरुश्री से न्यूयॉर्क में हुई थी। उसके बाद दोबारा न मिल सके पर सदगुरुश्री से बहुत लगाव हो गया। धार्मिक परिवार से तो हैं पर वो स्वयं बहुत ज़्यादा धार्मिक नही थे। रेड वाइन के बहुत शौक़ीन भी थे पहले। पर सदगुरुश्री से मिलने के बाद पता नही क्या हुआ कि फिर हाथ भी न लगाया। छूट गयी। हाँ, सदगुरुश्री के बताए ध्यान- भजन का अभ्यास रोज़ करने की कोशिश करते थे। भले पाँच- दस मिनट ही सही। उनका परिवार सदगुरुश्री से कभी नही मिला पर उन्होंने घर मंदिर में उनकी फ़ोटो लगा ली थी और पूरा परिवार सदगुरुश्री की तस्वीर के समक्ष नित्य मस्तक ज़रूर झुकाता है, प्रणाम अवश्य करता है। न जाने क्यों पूरे परिवार को बड़ा विश्वास सा हो गया था सदगुरुश्री पर, वो भी बिना मिले। पूरा रिश्ता आंतरिक है। सदगुरुश्री से फ़ोन पर भी ज़्यादा बात नही होती। बस, यदाकदा। वो भी जब, सदगुरुश्री अमेरिका में होते तब। एक बार सदगुरुश्री दरबार के WhatsApp group से जोड़े भी गए थे पर रोज़ के ढेरों संदेशों की टन्न टन्न से उकता कर group त्याग दिया। दो साल पहले कल्पेश भाई ने सदगुरुश्री को बॉस्टन बुलाना चाहा था, तो उनके चाचाजी ने विरोध किया कि इन बाबाओं के चक्कर में मत फँसो। जरूरत पड़ने पर सिर्फ़ कमाए पैसे काम में आते हैं, मुसीबत में कोई बाबा नज़र नही आता। कप्लेश भाई उदास हो गए। परिवार में बवाल नही चाहते थे। क्योंकि पिताजी के कुछ साल पहले गुजरने बाद चाचाजी ही सबसे बड़े हैं। यही चाचा उनके पिताजी को गुजरात से अमेरिका ले कर आए थे। पर चाचाजी की इस आपत्ति को उन्होंने सदगुरुश्री को नही बताया था। बस बहाना बना कर टाल दिया था। तब कुछ दिन बाद सदगुरुश्री ने उनको फ़ोन लगाया और और बात बात में बस इतना कहा कि कल्पेश भाईजब मुसीबत आएगी तो पैसा नही, सिर्फ़ गुरु की दया ही काम में आएगी, कहीं लिख लो। कल्पेश भाई चौंके, पर उस समय तो चुप रहे। बात आई- गयी हो गयी। पर इस बात को उन्होंने स्वयं कई लोगों को बताया। बाद में सदगुरुश्री को अन्य लोगों ने भी बार-बार बुलाया। पर हुज़ूर बॉस्टन कभी नही गए।

31 जुलाई को सरकार के जन्मदिन पर कल्पेश भाई का जन्मदिन का प्रणाम करने के लिए फ़ोन आया तो सदगुरुश्री ने कहा कि कल्पेश भाई भजन किया करो वरना जीवन की साँसें मुट्ठी की रेत की तरह निकल जायेंगी। कल्पेश भाई बोले જ્યારે તમે મારી સાથે હોવ ત્યારે મને શા માટે ચિંતા કરવાની જરૂર છે? यानी जब आप मेरे साथ हैं तब मुझे चिंता की क्या ज़रूरत?

वहाँ 16 अगस्त की देर रात और 17 अगस्त की सुबह की बात है, भारत में 17 अगस्त का तीसरा पहर था। कल्पेश भाई को भोर में सीने में ज़ोर का दर्द उठा। चीख कर उन्होंने पत्नी दर्शना को आवाज़ दी। समझ में आ गया कि मामला गड़बड़ है। पत्नी से घबरा कर बोले कि સદગુરુને ઝડપથી બોલાવો. पर पत्नी के लिए सदगुरु को बताने से ज़्यादा आवश्यक अस्पताल जाना लगा। फटाफट उन्हें वहाँ emergency room में ले जाया गया। पर वहाँ पहुँच कर पत्नी दर्शना बेन पर बिजली सी गिर गयी। डॉक्टरों को कोई नब्ज़ नही मिली। शायद 5-7 मिनट पहले हृदय गति बंद हो चुकी थी। उनकी पत्नी दर्शना बेन ने कल्पेश भाई के फ़ोन से घबरा कर सदगुरुश्री को फ़ोन लगाया और ज़ार ज़ार बिलख बिलख कर रोने लगीं। सदगुरुश्री ने कहा कि चिंता मत करो। फिर धीरे से पता नही क्या भरोसा दिया जैसे कह रहे हों कि आज तो गुरु महाराज की दया ही काम आएगी। और भजन पर बैठ गए।
कुछ देर के CPR के बाद कल्पेश भाई की हृदय गति सामान्य हो गयी। पर वो होश में नही आए। इधर सदगुरुश्री भजन से तो उठ गए पर ज़रा बेचैन से हो गए थे। उनकी तबियत अनमनी सी हो रही थी। फिर गुरुधाम से गाड़ी निकाली और गुरुमाता को लेकर हमारे पास आ गए। हमलोग नए गुरुधाम पर वेल्डिंग का काम कर रहे थे। मनोज भाई खाटी, शैलेष जी सभी लोग वहीं थे। ठंडी हवा चल रही थी। बारिश के कारण हल्की ठंड थी पर हमलोगों ने देखा कि सदगुरुश्री पसीने से तर-बतर थे। पसीना टप-टप गिर रहा था। उनके कपड़े भींग से गए थे। उनको ऐसे देख कर सदगुरुश्री के मना करने के बाद भी हमलोग ख़ुद उन्हें छोड़ने उनके साथ गए। मनोज भाई खाटी ने सदगुरुश्री की गाड़ी चलाई। हुज़ूर उनके बगल में बैठे। ख़ामोश। मैं मनोज भाई की गाड़ी ईको लेकर पीछे पीछे आया। सदगुरुश्री सामान्यत: डॉक्टर के पास जाने या उनको बुलाने से बचते हैं। बहुत हुआ तो फ़ोन पर ही डॉक्टर संयम गडकरी जी से बात कर लेते हैं। पर सुर्वे जी के दबाव के कारण वो पास वाले डॉक्टर सोमनाथ के पास चले गए। ब्लडप्रेशर 209/120 और पल्स 139 थी। डॉक्टर साहब चौंक गए। इतना ज़्यादा? सदगुरुश्री धीरे से मुस्कुराए। और बोले कि गाड़ी से चल के आ रहा हूँ न। थोड़ा समय दीजिए, कम हो जाएगा। ECG normal था। कुछ देर बाद पुनः चेक किया तो 170/110 और पल्स 135 थी। डॉक्टर साहब को कुछ समझ न आया। सदगुरुश्री घर आ गए।

पर पता नही क्यों सदगुरुश्री की तबियत आज तक बहुत ठीक नही हुई है। बार बार बस यही कहते हैं कि जल्दी ठीक कर लूँगा। ब्लड प्रेशर तो सामान्य है पर पल्स आज भी 110-140 के बीच रहती है। फ़ोन पर बात करने में उन्हें अब भी दिक्कत है। इसलिए फ़ोन पर बहुत कम बात कर रहे हैं। किसी और बड़े डॉक्टर को दिखाने के लिए जब उनसे कहा जाता है तो वो बात अनदेखी करते हुए नक़ली हंसी हंस देते हैं। कहते हैं कि तलवार के कर्म को सुई सा तो भोगना ही पड़ेगा। जल्दी ठीक हो जाऊँगा।
सदगुरुश्री कल यानी 23 अगस्त की शाम को फिर हमारे पास आए थे। वहाँ हम सबको सत्संग भी सुनाया।
पता चला है कि वहाँ बॉस्टन में कल्पेश भाई बहुत बेहतर हैं। अब घर आ गए हैं। उनके चाचाजी की हिदायत धरी रह गयी। पैसा कोई काम न आया। केवल गुरु की दया ही काम में आई। इससे ज़्यादा क्या कहूँ। कोशिश करूँगा तो रो पड़ूँगा।
सदगुरुश्री आपको लाखों प्रणाम।
जयगुरुदेव।

एक प्रेमी की कलम से।

Pandurang Waradkar
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