जयगुरुदेव
एक सत्संगी की कहानी
बात 1994 की है।जब श्री मती खटुबाई छगन पाटील जी अपने बड़े भाई से प्रेरित होकर मालिक से नामदान लेना चाहती थी।लेकिन उनके पति श्री छगन पोलाद पाटिल बहोत ज़्यादा शराब पिया करते थे।शराब के नशे में धुत उनको कभी अपनी पत्नी की कोई बात ठीक से समझ ही न आती थी।अतः खटुबाई जी मन ही मन मालिक से प्रार्थना करने लगी कि मालिक, मैं अपने पूरे परिवार के साथ आपके पास आकर नामदान लेना चाहती हूं।वे दिन रात मालिक के दर्शन के लिए व्याकुल रहती, और निरंतर प्रार्थना करती रहती थी।उनकी इतनी व्याकुलता को देख मालिक भी व्याकुल हो उठे।और एक दिन खेल रच दिया उनको अपने पास बुलाने का।
एक रात खटुबाई जी के पति रोज़ की ही तरह शराब के नशे में धुत घर आये , खटुबाई ने फिर रोज़ की तरह उनके सामने मालिक के पास चलने का आग्रह रखा।पर हमेशा की ही तरह पति ने अनसुना कर दिया।लेकिन कहीं दूर बैठ कर मालिक तो उनकी पुकार सुन ही रहे थे। सुबह हुई तो अचानक श्री छगन पोलाद पाटिल अपनी पत्नी से बोले कि चल कहाँ चलना चाहती है ?….एक बाबा मुझे रात भर परेशान करता रहा और कहता रहा कि अपनी पत्नी की बात मान ले… मान ले ….यह सुन कर खटुबाई जी की खुशी का ठिकाना न रहा।उन्होंने तुरंत ही अपने पूरे परिवार को तैयार करके मालिक के पास जाने की व्यवस्था की।और दो बेटे हितेंद्र छगन पाटिल , राहुल छगन पाटिल और बेटी वैशाली छगन पाटिल के साथ दोनों पति पत्नी मालिक के पास पहुँच गए।उन दिनों मालिक मथुरा आश्रम पर ही रहते थे।जैसे ही खटुबाई जी के पति ने मालिक को देखा वो जोर-जोर से चिल्लाने लगे और कहने लगे रात भर इसी बाबा ने मुझे नही सोने दिया , और कहता रहा कि मै अपनी पत्नी की बात मान लूँ।क्या इन्ही से नामदान लेना है।वहाँ मौजूद किसी शख्स ने कहा कि जी हां ये ही मालिक।ये जानकर खटुबाई जी के पति को सुध ही न रही।वे एक दम अचंभित हो गए।
कुछ देर बाद मालिक का सत्संग हुआ और मालिक ने मंच से ही सबको नामदान दिया। पूरा परिवार वापस अपने गांव तहाकली आ गया जो जलगाव में स्थित है।अब तो सारा परिवार मालिक के ध्यान भजन में ही लग गया।नामदान लेने के बाद से ही उनके पति ने कभी शराब नही पी।और बस मालिक के ही वचनों पर चलते रहे।
2009 में जब छगन पोलाद पाटिल जी ने शरीर छोड़ा तब अंत समय मे वे बोल रहे थे कि मालिक खड़े है सामने , मालिक आ गए उन्हें लेने । उनके इन शब्दो को वहां मौजूद सभी लोगो ने सुना और मालिक की दया को महसूस कर सभी की आँखे नम थी।
धीरे धीरे सभी लोगो को मालिक की दया का प्रत्यक्ष प्रमाण अक्सर मिलता था।और कई बार इस परिवार के किसी न किसी सदस्य ने उनको विपत्तियों से निकालते हुए मालिक को साक्षात देखा ।
2012 की घटना के बाद पूरा परिवार ही मानो जैसे दुःख के समुंदर में डूब गया था।और चारो तरफ ये ही समुंदर दिखता था।कहीं से भी इस दुःख से निकलने का रास्ता नज़र ही न आता था।मगर मालिक तो पर्दे के पीछे ही गये है बस पर नज़र तो अपने एक-एक जीव पर रखे है। हर किसी की चिंता है उन्हें।बस अभी प्रत्यक्ष रूप से हम ही उन्हें न देख पाते है।वे तो हर पल देख रहे हमे, हर पल निहार रहे हम सभी को।और जो कोई भी करुण पुकार से उन्हें आवाज़ देता है वे उनको अवश्य ही कोई न कोई मार्ग दिखाते ही है।बस एक बार तड़प के पुकारे तो सही हम उनको।
इस परिवार की भी रुकी हुई सी ज़िन्दगी और रुदन को मालिक ने देख लिया था।शायद इसीलिए ही ख़ुद तो कुछ कारणों से अब भी छिपे ही है पर खुद के अंदर वर्षो से छिपे हुए अपने अंश अपने प्रिय सदगुरु श्री के पास भेज दिया।जिनको आज हम में से कुछ लोग प्यार से साहेब कहते है। “सदगुरु श्री ” ये नाम तो स्वयं मालिक ने बचपन मे ही साहेब को दे दिया था।
फरबरी 2016 में जब ये परिवार सदगुरु श्री जी से मिला और उनको देखा , तो स्तब्ध रह गया, क्योंकि प्यारे सदगुरु श्री के पीछे मालिक की स्पष्ट परछाई और स्पष्ट दया को पूरे परिवार ने 2012 के बाद पहली बार महसूस किया था।आखों से झर-झर अश्रुधारा बहे जा रही थी।अंदर ही अंदर हो रहे रुदन को सदगुरु श्री जी समझ गए थे।और तभी अपने आशीर्वाद से सबको तृप्त कर दिया था। 2012 के बाद से इतना सुकून , इतना प्यार पहली बार बरस रहा था।सभी को फिर से एक ऊर्जा मिल गयी थी।खोई हुई खुशी बापस मिल गयी हो जैसे।
अभी खटुबाई जी की बेटी वैशाली छगन पाटिल, साहेब के प्रत्यक्ष दर्शन न कर पाई थी,परंतु उन्होंने सपने में कई बार साहेब को मालिक के साथ देखा था।तब वह अपने स्वप्न का अर्थ समझ ही न पायी थी।लेकिन जब ठाणे सत्संग में पहली बार साहेब के दर्शन किये तो वह स्तब्ध रह गयी, कुछ बोल ही न पा रही थी। आखों से बहती आसुंओ की धारा ही उनके भावो को स्पष्ट कर रही थी।वे तो बिना मिले ही सदगुरु श्री जी से अंतर में कई बार बाते कर चुकी थी।पर पहचान न पायी थी।
उसके बाद से आज तक ये पूरा परिवार सदगुरु श्री जी के माध्यम से ही मालिक की दया को लूट रहा है।हर पल साहेब के साथ को महसूस करता है।
खटुबाई जी के बेटे राहुल पाटिल को तो साधना में इतनी तरक्की मिली है जो पहले कभी न मिल पाई थी।वे तो दिन रात सिर्फ साहेब को ही देखते है,उन्हीं को अपने आस-पास महसूस करते है।
राहुल भइया तो साहेब के प्रेम में ऐसे दीवाने हो गए है कि उठते-बैठते , सोते- जागते , खाते-पीते हर वक़्त , हर लम्हा साहेब में ही डूबे रहते है।वे जब कभी भी bike से अपनी फैक्ट्री काम पर जाते है तो अपने पीछे साहेब को कुछ इस तरह पाते है कि साहेब के हाथ उनके कंधों पर होते है , यहां तक कि उनके हाथों की दो उंगलियों में जो अंगूठियां और तिल है, वे उन्हें भी स्पष्ट देख पाते है।साहेब में और साधना में इतने मगन है वे की खुद की भी सुध न रहती है।और अंतर का तो मानो एक के बाद एक खज़ाना खुलता ही जा रहा है।अंतर की साधना में दिन-प्रतिदिन अनुभवों को देख वे इतना आनंदित रहते है कि अब संसार की चीज़ें उनको बिल्कुल नही भाती है।साहेब ने सत्संग के दौरान कहा था कि यदि आप सब छोड़ कर खुद को मुझे सौंप देंगे और साधना में लग जाएंगे तो मै आपको धनीमानी बना दूंगा।सच इस बात को राहुल भइया कहते थकते ही नही है कि साहेब ने मुझे धनीमानी बना दिया।मुझे वे बहोत प्यार से दीदी कहते है तो कभी-कभी मुझसे साझा कर लेते है अपने अनुभवों को।
उनके अनुभवों को और साहेब के प्रति प्रेम को सुन कर अक्सर मेरी भी आँखे भर आती है।तो सोचा क्यों न उनके ये अनुभव आप सब से साझा करू।मालिक के ऐसे प्रेमी के अनुभवों को लिखने की कोशिश की है, पर ये तो वो अहसास होते है जिन्हें पूरी तरह से शब्दों में न बांध सकेंगे। आखिर मालिक की दया को उनकी कृपा को कैसे शब्दों का रूप दें।उन्हें बस सुना जा सकता है वो भी अंदर के कानों से।
ये एक सच्चे साधक के साथ गुज़रे सच्चे लम्हे है, जिन्हें मैने कहानी के रूप दे दिया।यदि कोई गलती हो गयी हो तो क्षमा प्रार्थी हूँ
- जयगुरुदेव🙏🙏💐💐💐🙏🙏💐
- Jai guru dev
- Jaigurudev
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- जयगुरुदेव🙏🙏