जयगुरुदेव
प्यारे साहेब
पधारो अब आँगन में हमारे
तख तख तुम्हरी वाट हम हारे
वंदन चरण कमल को तिहारे
नैना तुमको ,बिन झपके निहारे
पुलकित पुष्प हृदय के हमारे
चहुँ दिस बरसे अनुपम तारे
देख तुम्हे मन हर्षित इतना
सब भाव मिलन के कैसे निकारे
आज इतने लम्बे इंतज़ार के बाद वो घड़ियां आ ही गयी जब आप बापस फिर अपने देश, हम सबके करीब आ गए।इन चर्म आखों से आपके आने के पलों को भले ही हम देख न पा रहे हो मगर कल्पनाओं में कहीं ओस की सफेद चादर लपेटे हवाओ में लहराता शब्दो का संगीत , अध्यात्म से भीगा हुआ वो नूरानी चेहरा और आपके पीछे खड़े मालिक को एवं उनकी दया को….. प्रत्यक्ष रूप से महसूस कर सकते है।वैसे तो दैहिक रूप से आपका स्वागत करने के लिए हम लोग मुम्बई में नही है मगर भावनाओ में …..कहीं हममें से कोई दीप जलाये खड़ा है, तो कोई फूलो की माला लिए आपको पहनाने को आतुर है।किसी की पूजा की थाली न जाने कब से सज रही है ,तो कोई अपने दिल मे आपके लिए प्रेम को बसाए कहीं दूर खड़े होकर बस निहार रहा है।कोई आपके चरणों को छू कर अध्यात्म को स्पर्श करना चाहता है तो कोई सोच रहा की कुछ अच्छा सा अपने हाथों से बना हुआ खिला दे आपको ,और किसी के मन में आपके स्वागत के न जाने कितने ही गीत अनायास ही चले जा रहे है।जितने लोग उतनी भावनाएं बल्कि हर किसी की कई कई ख्वाइशें …. हम में से न जाने कितने लोग तो अब आपको अपने और करीब ,अपने घर बुलाने के लिए तारीखे लगाए बैठे है।सच कहूं तो आपके स्वागत के लिए कितनी भावनाएं है उन्हें शब्दो मे बिखेर न पाएंगे एक साथ।पर आप सब जानते है,सब समझते भी है।भक्ति मार्ग में सब भावनाओ का ही तो खेल है साहेब।भावनाओं में छिपे प्रेम को ही तो देख भगवान राम ने शवरी के झूठे बेर भी खा लिए थे।मीरा के विष का प्याला उन्ही के कंठ में डाल कर भी खुद में ही समाहित किया था कृष्ण ने। बेशक हम सब अभी भक्ति की इन ऊंची सीढ़ियों पर कदम न रख पाए हो पर निचली सीढ़ियों की किसी ईंट से तो होकर गुज़रते ही होंगे हम लोग शायद।उसी भक्ति भाव से, प्रेम से हृदय की गहराइयों से आपका स्वागत बस भावनाओ से दूर बैठ कर रहे है।और आशा करते है कि आप स्वीकार करेंगे हमारे छोटे से स्वागत को।
भाव बहत बन अश्रु रूपा
देख तिहारो रूप अनूपा
थाल सजी संग आरती धूपा
करौ स्वीकार यह स्वागत हमरो
बजे हृदय में राग अनूठा
अमेरिका से लेकर कनाडा ,लंदन और न जाने कितने देशों को और देशों में बसे शहरों को हम सबने भी आपके द्वारा डाली गयी facebook post के माध्यम से घूमा है।जैसे गर्मी की छुट्टियों में मन ही मन पिकनिक हो गयी हो हम सबकी भी।सच इतना जीवंत लिखते है आप।यूं तो हम में से ही …किसी प्रेमी का दर्द लिया था आपने और आपरेशन तक कराना पड़ा आपको । सच उस वक़्त हम लोग भी कहीं उस दर्द से करहा उठे थे जबकि जानते थे इस सत्य को कि कोई दर्द आपको प्रभावित नही कर सकता।पर प्रेम में, भक्ति में भीगे हम लोगो के मन को ये बात समझ कर भी समझ न आयी,और खो गए किसी उधेड़ बुन में ,कुछ चिंताओं में ,सोचते रहे…. न जाने अब कैसी होगी तबियत , न जाने क्या खा पा रहे होंगे आप ,न जाने क्या कहा डॉक्टर ने…. हज़ारो ख्यालात हम सभी के मन अनवरत बहते चले आ रहे थे।और हम सब आपस मे ही call से msg से बस बाते करके एक दूसरे के दिलो को तसल्ली दे रहे थे।दिल को तब सुकून मिला जब 2 दिन बाद live सत्संग में सुन लिया आपको और देख लिया।
हाँ ये सही है कि अभी हम लोग वहाँ नही है और आपके प्रत्यक्ष दर्शन को तड़प रही है हमारी आँखे।आपके दर्शन की प्यास उस वक़्त जल ग्रहण करेगी जब हम सभी गुरुपूर्णिमा के सत्संग के लिए मुम्बई पहुचेंगे।बढ़ी बेसब्री से इंतज़ार है हम सभी को उन घड़ियों का , अब एक -एक दिन कट रहा है और हर दिन करीब ही पहुच रहे है बस । यूं समझिए कि हर दिन अभी से कल्पनाओ में कहीं जीने लगे है हम ,सत्संग के पलों को आपके सानिध्य में। जैसे कोई कह रहा हो कि सद्गुरुश्री जी … मेरा बेटा पढ़ नही रहा उपाय बता दीजिए,तो कोई बेटी की शादी जल्दी करवाने की गुहार लगा रहा हो।कोई बीमारी का इलाज पूछ रहा है आपसे तो कोई अपने कष्टों का निवारण सुन रहा हो , कोई हाथ जोड़ के सिर्फ एक ही निवेदन कर रहा कि सद्गुरुश्री जी मेरा भजन बनवा दीजिये और कोई आया आँसुओ की धार लिए बस यही कह रहा कि साहेब खुद से कभी दूर न कीजियेगा। बावरे दिल को ये भी सुध न होती है कि आप कई घंटों से बैठे है और आराम भी करना है आपको , तभी कोई हौले से कान में फुसफुसा के कहेगा कि चलो चलते है ,अब साहेब को आराम भी करना होगा।और एक-एक करके ये फुसफुसाहट सबके कानो तक पहुच जाएगी।और आपको निहारते हुए वंदना करते हुऐ हम सब चुपचाप कहीं रात के आहोश में सो जाएंगे फिर नई सुबह के लिए ,फिर आपके दर्शन की आस लगाए सुंदर सपनों में खो जाएंगे । आप हम सबकी बातो को सुनेंगे ,कष्टों को दूर करेंगे भावनाओ से आशीर्वाद देकर सबको गोद उठा लेंगे।…. ये सभी मंज़र ….अभी से आंखों से होकर गुजर रहे है हमारे। 3-4 दिनों के इस सतसंग में हम सभी अपनी आत्मा को आपके सत्संग से तृप्त तो करेंगे ही साथ ही साथ संसार मे सही तरह से जीने के लिए , मन को साधने के लिए और साधना करने के लिए एक नई ऊर्जा का बड़ा सा बैग पैक करके रख रहे होंगे हर दिन हर लम्हा। यही तो करते है आप सत्संग के माध्यम से हम सभी को एक ऊर्जा से ही तो भरते है ,और जोड़ते है हमे मालिक से।
अब ज्यादा क्या कहे हम ,कुछ ही दिनों में प्रत्यक्ष रूप जियेंगे इन पलों को आपके साथ।
साहेब के स्वागत के लिए सभी सत्संगी भाई बहनों की भावनाओ को अपनी कलम से लिखने की एक कोशिश की है।यदि किसी की कोई बात छूट गयी हो या कुछ गलती हो गयी हो मुझसे ,तो माफी चाहती हूं।
धन्यवाद
जय गुरु देव साहेब
प्रणाम
भावपूर्ण चरणस्पर्श आपको
और आपके ज़रिए मालिक को
- आपने दिल की बात लिख दी ।अपनी भावनाओं से उसे व्यक्त किया। बहुत अच्छा लगा। जब साहेब मुल्क से बाहर होते हैं, तब जरा लगता है कि हां, वो शारीरिक रूप से दूर हैं। पर जब देश के किसी भी हिस्से में उनके कदम होते हैं तो लगता है जैसे वो मेरे पास ही तो हैं, सबसे पास।
जय गुरुदेव।