जयगुरुदेव
साहेब से जुड़े एक बेहद करीबी सत्संगी के दिल के अहसास मेरी कलम से ✍️…….
4 जनवरी ,1974 को जन्में सुनील चंद्रकांत सुर्वे जी , तथा उनका पूरा परिवार मालिक और साहेब की कृपा का निरंतर पात्र बना हुआ है।ऐसे दुर्लभ सत्संगियों के संग का भी मिल पाना बड़ा ही दुर्लभ होता है।वो कहते हैं न कि संगत का असर हमारे व्यक्तित्व पर भी पड़ता है तो अगर ऐसे दुर्लभ सत्संगी का साथ मिल जाये तब तो व्यक्तित्व में निखार आने के साथ-साथ जीवन और भी रूहानी पलों में मगन हो जाता है।सच कहूं तो ऐसे लोगो की संगत का मिलना भी मालिक की अनवरत बहती कृपा का पात्र बनने जैसा ही होता है।
बात 2009 की है जब सुनील सुर्वे जी अपने एक मित्र श्री राकेश जैन जी के माध्यम से साहेब के संपर्क में आये थे और पहली ही बार में सुर्वे जी को एक अलग सी अनुभूति का अहसास हुआ।जैसे कोई ऐसा मिल गया हो जिसकी तलाश जन्मो से थी उन्हें , जैसे जीवन का सही अर्थ अब साहेब से ही जानेंगे , जैसे अब सारे कष्टों का निवारण स्वत: ही हो जायेगा , जैसे वाक़ई किसी विलक्षण शक्ति का आशीर्वाद मिल गया हो।ऐसे अनवरत बहते अहसासों को बिना किसी से कहे , बस अपने दिल मे छुपाये वापस घर को आये तो सारा वृतांत अपनी पत्नी श्री मती नीता सुर्वे जी को बताया। ये सारा वृतांत सुन कर नीता जी अभिभूत हो गयी , और साहेब से मिलने को बेचैन हो उठीं।इस बार ये पूरा परिवार साहेब के दर्शन को उनसे मिलने गुरुधाम गया। और इस तरह एक के बाद एक मुलाकाते बढ़ती गयी , हर मुलाकात एक नई ऊर्जा से भर देती थी। धीरे-धीरे दोनों पति-पत्नी निःस्वार्थ भाव से साहेब की सेवा में लग गए।वैसे तो सुर्वे जी मुंबई पुलिस में कार्यरत है , लेकिन ये तो उनके लिए इस संसार की duty है। अपनी संसारी duty को निभाने के साथ-साथ साहेब की सेवा में जो कोई भी कार्य बन पढ़ता है , वे उसे बेहद श्रद्धा ओर निःस्वार्थ भाव से ऐसे करते जैसे ये उनके जीवन का बहोत अहम हिस्सा हो , साहेब की सेवा के बिना उनकी ज़िंदगी अधूरी सी हो जाती है जैसे।
सच में उनका इतना निःस्वार्थ प्रेम और भक्ति देख साहेब के साथ-साथ मालिक भी अभिभूत हो गए थे।
जनवरी 2011 में जब मालिक साहेब के घर मुंबई पधारे तब सुर्वे जी व उनकी पत्नी ने पहली बार मालिक के दर्शन किये थे। मालिक से मिलने के बाद दोनों पति-पत्नी को साहेब के अंदर छिपी रूहानी शक्ती के रहस्य का अहसास हुआ , और मानो वे मन ही मन खुद से बतियाने लगे थे कि जिसके पीछे इस सृष्टि के रचनाकार का हाथ हो , वो कोई मामूली तो नहीं हो सकता।
इस तरह साहेब से ही प्रेरित होकर दोनों पति-पत्नी जनवरी 2012 में मथुरा आश्रम पर पहुँचे और मालिक से नामदान लिया।और नामदान जैसे अमोलक ख़ज़ाने को लेकर मुंबई वापस आये और पहले से भी ज़्यादा भावों से साहेब की सेवा और साधना में लग गये।
वैसे तो इस परिवार को मई 2012 की घटना के कारण मालिक का इतना ज़्यादा सानिध्य न मिल पाया था , लेकिन साहेब के ज़रिए मालिक हर क्षण आज भी इस परिवार पर अपनी दया प्रत्यक्ष रूप से बनाये हुए है।सच में मालिक की ऐसी दया का पात्र तो कोई विरले ही बन पाता है।और मेरी नज़र में ये पूरा परिवार ऐसे विरलों में से एक है , जो साहेब की दया में उनकी कृपा में दिन-रात भीगता रहता है।
अब तो साहेब का भी प्रेम इस परिवार से इस कदर बढ़ गया है कि साहेब ख़ुद भी दूर न रह पाते है,और इसीलिए कुछ वर्षों पहले ही एक दिन सुर्वे जी को अपने घर के पास अपनी ही सोसायटी में घर दिलवा दिया , जिससे निःस्वार्थ प्रेम की ये डोर और भी मजबूत हो जाये।
आप सभी सोच रहें होंगे कि मैं बार-बार निःस्वार्थ शब्द का प्रयोग क्यों कर रही हूँ , क्योंकि इस शब्द के सही अर्थ को ही मैंने तब समझा जब इस परिवार से मिली। जी हाँ सुर्वे जी तथा नीता भाभी जी को दिन-रात सिर्फ ये ही चिन्ता रहती है कि साहेब को कब किस चीज़ की ज़रूरत है , कब क्या काम रह गया उनका, यहाँ तक कि जब साहेब मालिक के आदेशों का पालन करते हुए सत्संग करने के लिए देश-विदेश जाते हैं तो उनके पीछे उनके घर की समुचित व्यवस्थाओं को भी वखूबी पूरा करते ही है साथ ही साथ सत्संग में आये लोगो को किन-किन चीज़ों की जरूरत होगी , उनके रहने , खाने की सारी व्यवस्थाये भी इतनी ज़्यादा जिम्मेदारी से निभाते है जैसे हम लोग कभी-कभी ख़ुद के घर मे हो रहे किसी आयोजन के लिए सारी व्यवस्थाये देखते है।और कोई संसारी चिंताएं सताती ही नही दोनों पति-पत्नी को।हम , आप जब भी साहेब से मिलने जाते है तो मन मे अनगिनत प्रार्थनाएं चल रही होती है जैसे बेटी की शादी, बच्चों की पढ़ाई , घर की लड़ाई ,माँ का स्वास्थ्य और न जाने क्या-क्या ।और हर बार एक-एक बात को प्रार्थना का रूप देकर पूरी करवाने में लगे रहते है।हम तो असली प्रार्थना भी न कर पाते है , इस तरह से हम तो बस अपने स्वार्थवश साहेब के दर्शन करने जाते है , उनको पूजते है।लेकिन ये परिवार तो अपनी बड़ी से बड़ी परेशानी को भी कभी कह ही न पाया मुँह से।जैसे सेवा ही परमोधर्म हो इस परिवार के लिए वो भी बिना किसी प्रतिफल की इच्छा किये।आप लोगो के इस सेवा भाव को हृदय से प्रणाम।
मालिक के पास जाके ही आपकी सारी जरूरतें स्वतः ही पूरी हो जाती है , वो स्वयं को आपके कार्यो में लगा देते है , ये बात इस परिवार पर पूरी तरह सिद्ध होती है।बात करती हूं इस परिवार पर साहेब की स्वतः बहती अनवरत कृपा के बारे में।
दिसंबर 2010 में एक बार सुर्वे जी के किसी करीबी रिश्तेदार की हालत बेहद गंभीर हो चुकी थी। डॉक्टर्स ने 72 घंटो के अंदर मृत्यु के हवाले हो जाएंगे, ऐसा जवाब दे दिया था।सुर्वे जी की पत्नी बेहद परेशान थी आखों से अश्रुधारा निकलें जा रही थी।लेकिन किसी भी तरह का कोई आग्रह साहेब से नहीं कर पा रहे थे दोनों ही पति-पत्नी। साहेब हर पल हम सभी के साथ रहते है,लेकिन ये परिवार तो मानो कहीं उन्हीं के हृदय में बसता है।अतः जब साहेब को आभास हुआ तो वे स्वयं ही अस्पताल पहुँचे और कुछ देर मरीज़ को निहारते रहे , फिर सुर्वे जी से बात करने के दौरान मालूम पड़ा कि डॉक्टर्स ने बस 72 घंटे ही जीवित रहने का हवाला दिया है।
साहेब सुनकर हौले से मुस्कुराये , और बोले …. ठीक है…..देखता हूँ मै….इतना कह कर वे चले आये। उनके इतने शब्द ही तो बस काल को मुँह चिढ़ाने के लिए काफी होते है।फिर कहाँ काल की इतनी मज़ाल की उनके आगे टिक सके।साहेब के अस्पताल से आने के कुछ समय बाद ही मरीज़ की तबियत में सुधार होने लगा , हर शख्स हैरान , डॉक्टर्स भी अचंभित थे। 72 घंटो के अंदर तो उनको अस्पताल से घर भी भेज दिया गया। सुर्वे जी के जीवन मे साहेब से जुड़ी ये पहली घटना थी जिससे वे बेहद अभिभूत थे।
सुर्वे जी के जीवन से जुड़ी दूसरी घटना को आपके सामने रखती हूं।
एक दिन दोनों पति-पत्नी सुबह को ही गुरुधाम पहुँच गए।चेहरे पर चिंताओं का सैलाब उमड़ रहा था।साहेब उस वक़्त भजन पर बैठे थे।कुछ देर बाद जब साहेब अपनी अंतर्यात्रा से बाहर आये तो दोनों के चेहरे देख सब कुछ जान चुके थे।और मन ही मन संकल्प भी ले चुके थे कि कुछ न होने देंगे।जी हां इस बार मामला श्री मती नीता सुर्वे जी के पिता जी का था।जिन्हें डॉक्टर्स ने कैंसर होने की पूरी संभावना बतायी थी। साहेब तो सब कुछ पल भर में जान चुके थे लेकिन संसार को दिखाने के लिए पूरा वृतांत सुना और आस्वासन दिया कि कुछ न होने देंगे।शाम तक पता चला कि साहेब को तेज़ बुखार है जो अकारण ही न जाने कहाँ से आ गया।दवाओं के असर से बुखार कभी थोड़ा उतर जाता पर फिर इतना बढ़ जाता था कि थर्मामीटर से भी समझ न आ रहा था आखिर पारा कहाँ तक जायेगा।अगले दिन मुंबई के पास ही ठाणे में सत्संग था।लेकिन इतनी तेज़ बुखार देख गुरु माँ भी घबरा कर बोल पड़ी की शायद ठाणे का सत्संग कैंसल करना पड़ेगा। साहेब तुरंत बोले सत्संग क्यों रुकेगा? विश्वास नहीं है क्या? अगले दिन साहेब बुखार में भी सत्संग के लिए ठाणे गए।ऐसी विषम स्थिति में भी सुर्वे जी साहेब के साथ ठाणे जाने को तैयार थे।पर साहेब ने उन्हें उनके ससुर जी के पास अस्पताल में जाने का आदेश दे दिया।सत्संग देते-देते साहेब का बुखार भी जवाब दे गया ओर डर के कहीं दूर जा छिप गया।पर शाम तलक फिर वह अपना ठिकाना समझ वापस आ गया।क्योकि खेल तो अभी बाकी था।खेल कुछ यूं हुआ कि इधर साहेब बुखार का बहाना बना के नीता जी के पिता जी के कष्टो को अपने ऊपर ले रहे थे, और उधर पिता जी की कैंसर की रिपोर्ट ही नेगेटिव आ गयी।हर कोई रिपोर्ट को देख कर एक ओर खुशी से फूले नहीं समा रहा था बहीं दूसरी ओर हैरान था इस बात पर की ये कैसे संभव हुआ।पर इस प्रश्न का जवाब तो अंदर ही अंदर डॉक्टर्स को छोड़ के सबके पास था।हर कोई उस परम शक्ति की लीला को समझ रहा था।और मुख नहीं अपितु आँसुओ से धन्यवाद दे रहा था।रिपोर्ट्स आने के बाद साहेब भी ठीक हो चुके थे उन्होंने मालिक को प्रणाम किया।और सुर्वे जी के प्रति अपने प्रेम को इस तरह व्यक्त किया।सच ही तो है,हम लोग साहेब से प्रेम करते है इसका वखान कभी आँसुओ से , कभी सेवा से किसी न किसी तरह कर ही देते है पर साहेब भी हमे बेहद प्रेम करते है इसका वखान इसी तरह अपनी कृपा बरसा कर करते हैं।
बात करती हूँ सुर्वे दम्पति के जीवन से जुड़ी एक बेहद मार्मिक घटना जिसकी वजह से वे आज पूर्ण परिवार बन सके हैं।
वैसे तो ये परिवार 2009 से साहेब की छाया में है।2009 में ही सुर्वे जी की शादी को 12 साल हो चुके थे परंतु उनका आंगन नन्ही किलकारियों से वंचित था।और अपनी इस व्यथा को दोनों ही पति-पत्नी कभी कह ही न पाये।क्योकि आप दोनों कभी कुछ मांग ही कहाँ पाये साहेब से।सच कहूँ तो सुर्वे जी को कभी कुछ कहने का मौका साहेब ने दिया ही नहीं।बिना कहे ही उनकी हर बात को समझ जाते हैं हमेशा से ही। 2012 के बाद से ही साहेब ने सुर्वे जी को संतान-सुख को विलम्ब से मिलने के स्पष्ठ संकेत दे दिए थे।उसके बाद से सुर्वे जी ने कभी कोई इच्छा ज़ाहिर ही न की बस दिन-रात साहेब की बातों पर विश्वास कर उन्हीं की सेवा में निःस्वार्थ लगे रहे।प्रेम ,विश्वास और सेवा की इस लंबी तपस्या का फल तो देना ही था।और सुर्वे जी के कर्मो के ज़खीरे को काटते-काटते काल से लड़ कर भी 10 अक्टूबर 2018 को श्री मती नीता सुर्वे जी ने एक साथ दो बच्चों को जन्म दिया… एक प्यारी सी बेटी और एक चंचल सा बेटा।दोनों के चेहरों पर से इतना तेज छलकता है मानो देव लोक से कोई देवी-देवता आये हो जन्म लेकर ।इतने लंबे समय के बाद संतान सुख को पाकर सुर्वे जी तथा नीता भाभी जी की खुशी तो मानो सातवें आसमान पर जा पहुंची थी।क्योंकि 20 सालों के बाद ही सही पर एक साथ जुड़वां बच्चों की खुशी ने उनकी अधूरी ज़िन्दगी को कुछ इस तरह पूरा कर दिया था की अब कोई कमी बची ही नही है।जी हाँ 20 सालों के बाद सुर्वे जी को यह सुख मिला था। तो उनकी ये अपार खुशी तो जायज़ थी।
मैने भी इस साल गुरुपूर्णिमा के अवसर पर सुर्वे जी की प्यारे प्यारे दोनों बच्चों को देखा था।तेरना ऑडिटोरियम में जब नीता भाभी जी दोनों बच्चों के साथ साहेब का स्वागत करने stage पर आयी , तो साहेब के स्वागत में अनकहे से शब्द और उनकी भावनाओं को आंखों से बरसते मेरे साथ-साथ वहाँ मौजूद हर शख्स ने देखा होगा।हृदय में बसे प्रेम के समुद्र को वे शब्दो मे बयां बेशक न कर पायीं लेकिन , आखों से बहते सैलाब ने हर बात कह दी थी। ऐसा प्रेम और स्नेह भी हर भक्त के वश में नहीं।
एक और बड़ी अदभुत घटना जिसका साक्षी सुर्वे जी के साथ-साथ उनका पूरा गांव होगा।
पोलादपुर , ये महाराष्ट्र का एक छोटा सा गांव है, जहाँ सुर्वे परिवार 300 वर्षों से रह रहा है।आजकल के आधुनिक युग मे भी इस गांव के लोग सावित्री नदी से पानी भर के सर पर रख कर लाते है।एक बार सुर्वे जी अपना पैतृक गांव दिखाने और कुछ पुराने परिवार जनों को मिलवाने के भाव से साहेब को पोलादपुर ले आये।लोगो ने बड़े भाव से साहेब का सत्कार किया।सुर्वे जी मन ही मन इस बात को सोंच कर फूले नहीं समा रहे थे कि साहेब उनके साथ उनके गांव भी आ गये।वे तो सदा ही निःस्वार्थ भाव से साहेब के साथ रहते है लेकिन इस बार गांव के लोगो ने अपने गांव की पानी की समस्या सुर्वे जी के द्वारा साहेब के सामने रखी।समस्या सामने रखने से पहले कुछ लोगो के मन मे तो थोड़ा विश्वास था तो कुछ सिर्फ हमारे साहेब को आज़माना ही चाह रहे थे। लेकिन सुर्वे जी तो पूरी तरह से निश्चिन्त थे इस बात से की साहेब के लिए कुछ भी असंभव नहीं।अतः इस बार पूरे गांव की पानी की समस्या कह ही दी अपने मुख से।आख़िर सुर्वे जी ने पहली बार कुछ मुख से कह के मांगा था।साहेब तो इसी बात से मन में आंनदित हो रहे थे कि चलिये आज कुछ सुर्वे जी ने मांगा तो सही…. क्या मांगा इसकी तो परवाह ही नहीं थी।जैसे एक बार कृष्ण इस बात से खुश थे कि सुदामा ने कुछ मांगा तो सही …. मेरे सखा ने मुझसे मांगा है आज और इस खुशी में कृष्ण को ये भी सुध न थी कि चावल के तीन दानों के बदले वे तीन लोक दे चुके थे सुदामा को।साहेब भी उसी तरह मन मे बोल पड़े थे …. तथास्तु…।बेशक कृष्ण और सुदामा की इस कहानी का सच कुछ और हो जो साहेब ही जानते होंगे।परंतु हमने जो सुना और रामानंद सागर के नाटकों में देखा है, वो आज भी हॄदय को भावुक कर जाता है।
कुछ पल बाद साहेब ने जब ज़मीन की तरफ देखा तो आभास हो गया था उन्हें शायद की ज़मीन तो पत्थरो से भरी है वो भी बहोत गहरे तक।फिर आसमान की तरफ देखते हुये काल को चेतावनी दी जैसे और मन ही मन कहा कि पानी तो इसी जमीन से निकलेगा चाहें मुझे ख़ुद ही क्यों न सींचना पड़े।काल और साहेब के बीच के इस संवाद को शायद ही कोई सुन पा रहा होगा।जीत तो साहेब की ही निश्चित थी।समय बीतता गया , और गांव के लोग सब्र करके भी बेसब्र हुये जा रहे थे।अतः वे बार-बार साहेब के पास तरह-तरह से गुहार लगाये जा रहे थे।भोले-भाले गांव बालो को ये ख़बर ही कहाँ थी कि सृष्टि का रचयिता तो उनकी प्रार्थना को स्वीकार कर चुका है बस कुछ समय इंतज़ार करना होगा , जैसे बीज बो देने के बाद उसके वृक्ष बनने का इंतज़ार करना होता है। कुछ समय बाद लोगो की प्रार्थनाओं का बीज अंकुरित हो चुका था तभी साहेब ने निश्चित तारीख पर निश्चित दिशा में बोरिंग करवाने का आदेश दे दिया।ये ख़बर आग की तरह आस-पास के गांवों तक फैल गयी। तथा 1 फरवरी 2019 को सुर्वे जी बोरिंग करने वाली टीम को लेकर पोलादपुर पहुँच गये।
काल जानता है कि दयाल के आगे वो कभी न जीत पायेगा फिर भी अपने दांव खेलना नहीं छोड़ता। और बस बोरिंग करने बालो की सलाह के अनुसार बोरिंग की जगह इतने इशारे से बदल दी गयी कि ख़ुद सुर्वे जी को भो ख़बर न लगी।मंज़र कुछ यूं हुआ की बोरिंग 100 फिट….150 फिट…. होती गयी पर सिवाय पत्थर के कुछ हाथ न आया।लिहाज़ा साहेब को फोन से सारी सूचना दी , साहेब ने सुन कर कहा कि बोरिंग तो अलग जगह हो…. और फिर चुप हो गये…. फिर बोले कि वहाँ तो पत्थर हैं…. सुर्वे जी को समझ आ गया था शायद कुछ….. और मन ही मन बोरिंग करने बाली टीम की बात मानने पर पछताने लगे थे , फिर साहेब ने कहा …देखता हूँ …. थोड़ा और नीचे जाइये।पुनः बोरिंग हुयी ….200 फिट….. 250 फिट …. 300 फिट ।पर फिर से कुछ हाथ न लगा। सुर्वे जी का हॄदय इस बात की चिंता में डूब गया था कि कहीं मेरे गुरु की हँसी न हो जाये।चिंताओं की वजह से वो भी इस बात बेख़बर ही हो गये थे शायद की ये तो काल और दयाल के बीच बस छोटा सा वार्तालाप ही हो रहा है।घबराते हुये सुर्वे जी ने फिर फ़ोन किया और कहा हुज़ूर अब 300 फिट हो चुका , अब तो लोग निराश होने लगे है।सुर्वे जी की इस बात में शायद कहीं उन्हीं की हल्की सी निराशा को भांप गये थे साहेब।और कहा कि मै बहोत ऊपर खींच लाया हूँ पानी…. बस थोड़ा और….नीचे पत्थर मिलेंगे और फिर गीली मिट्टी, फिर पानी मिलेगा।इतना सुनकर तो सुर्वे जी के मन मे ऊर्जा भर गयी थी , मानो साहेब का एक-एक शब्द सुर्वे जी को ज़मीन की गहरायी में उतार कर, हर दृश्य को दिखा रहा हो।और इस बार 350 फिट के बाद बाद पहले पत्थर मिले , फिर गीली मिट्टी और कुछ ही पलों में पानी की धार इतने वेग से निकलने लगी कि वहां मौजूद हर शख्स उसको देख आँसुओ के धार से भीग रहा था।सुर्वे जी तो खुशी से इतने भावुक थे कि जब सारी बात बताने को साहेब को फोन किया तो ठीक से बोल ही न पा रहे थे।उनके उलझे हुये से हर शब्द को साहेब बिना कहे ही समझ चुके थे।पानी की ये धार आज भी पोलादपुर गांव में साहेब की कृपा की धार बनके बह रही है।ऐसे हैं हमारे साहेब , और ऐसा है उनका सुर्वे जी के प्रति प्रेम।
आप दोनों लोगो के जीवन मे तो अभी न जाने कितने ही पल कितनी ही बाते होंगी जो साहेब की दया की साक्षी होंगी।उनमें से कुछ को ही मैंने लिखने की कोशिश की है।यदि कोई ग़लती हो गयी हो तो क्षमा प्रार्थी हूँ।
- Jaigurudev saddguru Shri 🙏🙏🙏
- सतगुरुश्री दयाल को कोटि कोटि प्रणाम
- Jai Shri gurudev ji 🙏🙏🙏🙏
- Jai gurudev