तुम जिसे समृद्धि व सुख मानते हो, सदगुरु की दृष्टि में वो धूल मिट्टी के सिवा कुछ भी नहीं।
जैसे बच्चे समंदर के किनारों पर कौड़ियाँ व सीपियाँ बीनते हैं और रेत पर महल बनाते हैं। जैसे चींटियाँ शक्कर के एक दाने को क़ीमती समझती है। जैसे सुअर मल-मूत्र तथा कीचड़ को समृद्धि मानता है। वैसे ही समृद्धि की ये सोच तुम्हारी है।
सदगुरु इससे इत्तेफ़ाक नहीं रखते।
-सदगुरुश्री



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