तुम स्वयं को सत्संगी तो कहते और समझते हो, पर क्या सच में सत्संगी हो?
यदि तुम सत्संगी होते तो तुम्हारी ये दुर्गति न होती।
अगर तुम सच्चे सत्संगी होते तो गुरु महाराज को यूँ लुप्त होने की ज़रूरत ही न होती।
जो तुम सच्चे सत्संगी होते, तो गुरु महाराज की इस मौज की तुम्हें खबर होती।
अभी भी वक्त है।
खुद का…