बाह्य प्रकाश का कोई अर्थ नहीं है। बाहर सैकड़ों सूरज का भी उजाला हो तो बेकार है वह। तुम प्रकाशित तब ही हो सकोगे जब अन्तर में दीप जलेंगे। और ये गुरु की दया व मेहर के बिना हो न सकेगा। जब भी ऐसा महान सुअवसर घटित हो तो सदगुरु को उसकी इस विशिष्ट कृपा के लिये कोटि कोटि धन्यवाद दो।अब तुम्हारी नींद टूटने की प्रथम प्रक्रिया आरम्भ हुई है।
-सदगुरुश्री
- सतगुरु जय गुरुदेव कोटी कोटी प्रणम मेरे सतगुरु की चरणो मे 🌺🌺🌺🌺👏👏
- जय गुरुदेव प्रणाम सद्गुरु दातार
- Jai gurudev
- जय सदगुरुश्री दयाल
कोटि कोटि प्रणाम। - सद् गुरु महाराज की जय जय जय।