महात्माओं को तो तुमने घर की मुर्गी समझ लिया है। जब चाहते हो समर्पित हो जाते हो, जब चाहो संदेह करने लगते हो। स्वार्थ हुआ तो प्रेम से भर जाते हो, और स्वार्थ सिद्ध नहीं हुआ तो घृणा कर बैठते हो। उनके हर वचन, हर कर्म पर नुक्ताचीनी करते रहते हो।जितनी तुम उनकी परीक्षा लेते हो अगर उसका लेशमात्र भी इम्तिहान…