मेरी आँख खुली है या नहीं? मेरी पहुँच कहाँ तक है? मैं संत हूँ, साध हूँ या कौन हूँ? इसकी निरर्थक चिन्ता करने की जगह तुम अगर अपने अंतर्दृष्टि जागृत करने का उपक्रम करते, तुम अपने घर कब और कैसे पहुँचोगे इसकी फ़िक्र करते, मरने के बाद कहाँ जाओगे इसकी जानकारी हासिल करते और तुम कौन हो इस प्रश्न के उत्तर की…

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