जड़ मस्तिष्क से वहाँ की तो कल्पना भी मुमकिन नही है।
सचखंड के ऊपरी मुहाने से लेकर निचले मक़ाम तक चहुँओर सुरतों का मालिक यानी राधाओं का स्वामी विराजमान है।
उसका स्वरूप विलक्षण है।
बड़ा भव्य।
अति दिव्य।
उसके हर रोम में करोड़ों सूर्यों से ज़्यादा नूर है।
वहाँ हर सुरत झूम रही है।
आनन्द में मगन।
परम सुख में लीन।

-परम पूज्य सदगुरुश्री..


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