जयगुरुदेव
श्री सुनील सुर्वे जी और उनके परिवार की सदगुरुश्री से जुड़ी एक और अति विलक्षण घटना आप सभी के समक्ष प्रस्तुत कर रही हूँ जिसका साक्षी सुर्वे जी के साथ-साथ उनका पूरा गांव है।
पोलादपुर , ये महाराष्ट्र का एक छोटा सा गांव है, जहाँ सुर्वे परिवार 300 वर्षों से रह रहा है।आजकल के आधुनिक युग मे भी इस गांव के लोग सावित्री नदी से पानी भर के सर पर रख कर लाते है।एक बार सुर्वे जी अपना पैतृक गांव दिखाने और कुछ पुराने परिवार जनों को मिलवाने के भाव से साहेब को पोलादपुर ले आये।लोगो ने बड़े भाव से साहेब का सत्कार किया।सुर्वे जी मन ही मन इस बात को सोच कर फूले नहीं समा रहे थे कि साहेब उनके साथ उनके गांव भी आ गये।वे तो सदा ही निःस्वार्थ भाव से साहेब के साथ रहते हैं लेकिन इस बार गांव के लोगो ने अपने गांव की पानी की समस्या सुर्वे जी के द्वारा साहेब के सामने रखी।परेशानी समक्ष रखने से पहले कुछ लोगो के मन मे जहां थोड़ा विश्वास था तो कुछ लोग सिर्फ हमारे साहेब को आज़माना ही चाह रहे थे। लेकिन सुर्वे जी तो पूरी तरह से निश्चिन्त थे इस बात से की साहेब के लिए कुछ भी असंभव नहीं।अतः इस बार पूरे गांव की पानी की समस्या कह ही दी अपने मुख से।आख़िर सुर्वे जी ने पहली बार कुछ मुख से कह के मांगा था।साहेब तो इसी बात से मन में आंनदित हो रहे थे कि चलिये आज कुछ सुर्वे जी ने मांगा तो सही…. क्या मांगा इसकी तो परवाह ही नहीं थी।जैसे एक बार कृष्ण इस बात से खुश थे कि सुदामा ने कुछ मांगा तो सही …. मेरे सखा ने मुझसे मांगा है आज और इस खुशी में कृष्ण को ये भी सुध न थी कि चावल के तीन दानों के बदले वे तीन लोक दे चुके थे सुदामा को।साहेब भी उसी तरह मन मे बोल पड़े थे …. तथास्तु…।बेशक कृष्ण और सुदामा की इस कहानी का सच कुछ और हो जो साहेब ही जानते होंगे।परंतु हमने जो सुना और रामानंद सागर के नाटकों में देखा है, वो आज भी हॄदय को भावुक कर जाता है।
कुछ पल बाद साहेब ने जब ज़मीन की तरफ देखा तो आभास हो गया था उन्हें शायद की ज़मीन तो पत्थरो से भरी है वो भी बहोत गहरे तक।फिर आसमान की तरफ देखते हुये काल को चेतावनी दी जैसे और मन ही मन कहा कि पानी तो इसी जमीन से निकलेगा चाहें मुझे ख़ुद ही क्यों न सींचना पड़े।काल और साहेब के बीच के इस संवाद को शायद ही कोई सुन पा रहा होगा।जीत तो साहेब की ही निश्चित थी।पर ये वक़्त गर्भ में छिपा था। काल का पहिया घूमता रहा और समय बीतता गया। गांव के लोग सब्र करके भी बेसब्र हुये जा रहे थे।अतः वे बार-बार साहेब के पास तरह-तरह से गुहार लगाये जा रहे थे।भोले-भाले गांव बालो को ये ख़बर ही कहाँ थी कि सृष्टि का रचयिता तो उनकी प्रार्थना को स्वीकार कर चुका है बस कुछ समय इंतज़ार करना होगा , जैसे बीज बो देने के बाद उसके वृक्ष बनने का इंतज़ार करना होता है। कुछ समय बाद लोगो की प्रार्थनाओं का बीज अंकुरित हो चुका था। कई साल के बाद साहेब ने निश्चित तारीख पर निश्चित दिशा में बोरिंग करवाने का आदेश दे दिया।ये ख़बर आग की तरह आस-पास के गांवों तक फैल गयी। तथा 1 फरवरी 2019 को सुर्वे जी के भाई बोरिंग करने वाली टीम को गाँव बुला लिया।
काल जानता है कि दयाल के आगे वो कभी न जीत पायेगा फिर भी अपने दांव खेलना नहीं छोड़ता। और बस बोरिंग करने बालो की सलाह के अनुसार बोरिंग की जगह इतने इशारे से बदल दी गयी कि ख़ुद सुर्वे जी को भो ख़बर न लगी।मंज़र कुछ यूं हुआ की बोरिंग 100 फिट….150 फिट…. होती गयी पर सिवाय मिट्टी, कंकड़ और पत्थर के कुछ हाथ न आया।लिहाज़ा साहेब को फोन से सारी सूचना दी। साहेब राँची में देश के बड़े अख़बार प्रभात ख़बर के दफ़्तर में थे। उन्होंने सुन कर कहा कि बोरिंग तो अलग जगह हो…. और फिर चुप हो गये…. फिर बोले कि वहाँ तो पत्थर हैं…. सुर्वे जी को समझ आ गया था शायद कुछ….. और मन ही मन बेचैन हो उठे।फिर साहेब ने कहा …देखता हूँ …. थोड़ा और नीचे जाइये।पुनः बोरिंग हुयी ….200 फिट….. 250 फिट …. 300 फिट ।पर फिर से कुछ हाथ न लगा। सुर्वे जी का हॄदय इस बात की चिंता में डूब गया था कि कहीं मेरे गुरु की हँसी न हो जाये।चिंताओं की वजह से वो भी इस बात बेख़बर ही हो गये थे शायद की ये तो काल और दयाल के बीच बस छोटा सा वार्तालाप ही हो रहा है।घबराते हुये सुर्वे जी ने फिर फ़ोन किया और कहा हुज़ूर अब 300 फिट हो चुका , अब तो लोग निराश होने लगे है।सुर्वे जी की इस बात में शायद कहीं उन्हीं की हल्की सी निराशा को भांप गये थे साहेब।और कहा कि मै बहोत ऊपर खींच लाया हूँ पानी…. बस थोड़ा और….नीचे पत्थर मिलेंगे और फिर गीली मिट्टी, फिर पानी मिलेगा।इतना सुनकर तो सुर्वे जी के मन मे ऊर्जा भर गयी थी , मानो साहेब का एक-एक शब्द सुर्वे जी को ज़मीन की गहरायी में उतार कर, हर दृश्य को दिखा रहा हो। 350 फिट भी हो गया। कुछ नहीं। पर उसके बाद पहले पत्थर मिले, फिर गीली मिट्टी और कुछ ही पलों में पानी की धार इतने वेग से निकलने लगी कि वहां मौजूद हर शख्स उसको देख आँसुओ के धार से भींग रहा था।सुर्वे जी तो खुशी से इतने भावुक थे कि जब सारी बात बताने को साहेब को फोन किया तो ठीक से बोल ही न पा रहे थे।उनके उलझे हुये से हर शब्द को साहेब बिना कहे ही समझ चुके थे।पानी की ये धार आज भी पोलादपुर गांव में साहेब की कृपा की धार बनके बह रही है।ऐसे हैं हमारे साहेब , और ऐसा है उनका सुर्वे जी के प्रति प्रेम।
आप दोनों लोगो के जीवन मे तो अभी न जाने कितने ही पल कितनी ही बाते होंगी जो साहेब की दया की साक्षी होंगी।उनमें से कुछ को ही मैंने लिखने की कोशिश की है।यदि कोई ग़लती हो गयी हो तो क्षमा प्रार्थी हूँ।
- Jaigurudev
- !! जय गुरुदेव !!
- Jai Gurudev 🙏🙏
- जयगुरुदेव सद्गुरुश्री दयाल को प्रणाम
- Jaigurudev 🙏 🙏🙏🙏