साधना के समय विचारशून्यता ज़रूरी है।
जब तक अंदर खालीपन ना होगा, पात्रता विकसित न होगी।
बाहरी दीवार नही, अंदर का खालीपन पात्रता है।
आप जितना कम जानेंगे,पात्रता उतनी ही अधिक होती जाएगी।
अधिक जानने का प्रयास आपको अपात्र बना देगा।
अगर आपके भीतर भारी-भरकम ज्ञान-विज्ञान भर दिए जायें तो ये वैसा ही होगा…

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