सतयुग में आत्मा यानी सुरत की निरत सेतसुन्न में होती है। त्रेता में ये कमान तीन गुणों में आ जाती है। द्वापर में ये नियंत्रण अद्वैत से द्वैत में बँट जाता है। और कलयुग में ये डोर दसवीं गली यानी तीजे तिल पर बंध जाती है।

-परम पूज्य सदगुरुश्री..


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