ब्रह्मचारिणी अपनी कमंडल यानि पूर्व कर्म या प्रारब्ध और माला अर्थात् नवीन कर्म के साथ कुंडलिनी शक्ति का प्रतिनिधित्व करते हुए कहीं बाहर नहीं, बल्कि आपके भीतर आपके स्वाधिष्ठान चक्र पर विराजमान आपकी ही शक्ति हैं।
-सदगुरुश्री


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