आज्ञाचक्र की ऊर्जा कात्यायनी कहलाती है।
कात्यायनी अपने अस्त्र तलवार की धार की तरह तीसरे तिल से आगे बढ़ कर झंझरी द्वीप से आगे निकल कर आत्मा को अपने तत्व शब्द को थाम कर अपनी परम चेतना सदगुरु यानी प्रभु में समाहित होने की प्रेरणा देती है।
-सदगुरुश्री..
आज्ञाचक्र की ऊर्जा कात्यायनी कहलाती है।
कात्यायनी अपने अस्त्र तलवार की धार की तरह तीसरे तिल से आगे बढ़ कर झंझरी द्वीप से आगे निकल कर आत्मा को अपने तत्व शब्द को थाम कर अपनी परम चेतना सदगुरु यानी प्रभु में समाहित होने की प्रेरणा देती है।
-सदगुरुश्री..