प्रभु, हनुमान के अन्दर ही नहीं, तुम्हारे भीतर भी हैं। पर तुमने कभी ह्रदय में बैठे परमात्मा को पुकारा ही नहीं। कभी तड़प कर किसी महबूब की तरह ख़ुद में बैठे ख़ुदा को आवाज़ दी ही नहीं। वरना अपने अंतर्मन में विराजमान राम से तुम्हारा परिचय हो ही जाता। यदि तुम ध्यान में उतर कर…


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कोटि कोटि प्रणाम। जय सदगुरुश्री। जयगुरुदेव।

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वो सुनहरे पल जब ज़िन्दगी को ज़िन्दगी मिली यूँ तो खट्टी मीठी सी ख़ुशनुमा ज़िन्दगी बीत रही थी मेरी, और जी रही थी मैं, आराम से, बाहर की दुनिया के ख़ूबसूरत रंगों को अपलप निहारते और दुलारते हुए। अपनी ही मस्ती में गुम और इस बात से अनजान कि हमारे भीतर भी रहता है कोई।…

वो सुनहरे पल जब ज़िन्दगी को ज़िन्दगी मिली यूँ तो खट्टी मीठी सी ख़ुशनुमा ज़िन्दगी बीत रही थी मेरी, और जी रही थी मैं, आराम से, बाहर की दुनिया के ख़ूबसूरत रंगों को अपलप निहारते और दुलारते हुए। अपनी ही मस्ती में गुम और इस बात से अनजान कि हमारे भीतर भी रहता है कोई।…

जब तुम प्रभु का अंश हो तो छोटे मोटे परमात्मा तो तुम भी हुए न? फिर तुम इतने कष्ट में क्यूँ हो। सिर्फ़ इसलिए कि तुम स्वयं को नहीं पहचानते हो। तुम स्वयं से ही अपरिचित हो।अगर तुम्हें तुम्हारा बोध हो जाए तो तुम्हारी स्थिति पल में बदल जाए।

प्रेमभावी सूरत संगत। सदगुरुश्री का भावपूर्ण स्वागत।

यदि तुम्हारे अंतर्मन में पवित्रता और शांति न हो तो कोई भी बाहरी गतिविधि,क्रियाकलाप या तरकीब से कुछ भी हासिल न हो सकेगा। तुम जो भी पाओगे, अपने भीतर जा कर ही प्राप्त कर सकोगे।