अगर तुम अपने भीतर उस केंद्र को खोज सको जहां से सब झंकारें प्रकट हो रही हैं तब तुम पाओगे कि अचानक चेतना पलट गयी है और एक क्षण के लिए तुम स्वयं को निर्ध्वनि से भरे नीरस गूँगे जगत में पाते हो, कि जैसे तुम अब तक जी तो रहे थे पर बेकार.. व्यर्थ.. निरर्थक.. और दूसरे ही क्षण तुम्हारी चेतना भीतर की ओर मुड़ जाती है और तब तुम स्वयं को शब्दों के प्राप्त के मध्य पाते हो। और तब तुम्हारा जीवन की सम्पूर्ण दशा और दिशा पलट जाती है, उलट जाती है। तब तुम बस शब्द को, ध्वनि का, नूर का पान करोगे.. महाधुन का.. आनंद का संसर्ग करोगे, उस वास्तविक जीवन की धड़कन को सुनोगे जो तुम्हारा, हर रचना का, समूचे जीवन और हर विस्तार का सार है.. और एक बार तुमने यदि उस आवाज़ को, उस आनंद को सुन लिया तो अब कोई भी नशा तुम पर तारी हो ही नहीं सकता तुम्हें कोई बाहरी स्थिति मदहोश कर ही नहीं सकती। संभव ही नही है। वह सुर, वह शब्द, वह नाद सदा तुम्हारी ओर बह रहा है.. आ रहा है.. क्योंकि तुम्हारा तुमसे अब तक परिचय ही नही था.. साक्षात्कार ही नही था.. तुम्हे खुद का बोध ही नही था.. तुमसे तुम्हारा, प्रभु का और शब्द का बोध सिर्फ़ एक संबुद्ध गुरु ही करा सकता है.. सदगुरु ही करा सकता है.. उसके लिए तुम्हे सन्देह और प्रश्नों के जंजाल को ताक पर रख कर गुरु का, सदगुरु का होना होगा.. स्वयं को उसे अर्पित करना होगा.. समर्पित करना होगा.. सच में.. यथार्थ में.. तब जाकर तुम इस गूढ़ आनन्द के अनुगामी बन पाओगे, इसमें सराबोर हो सकोगे।
Ilजयगुरुदेवll
दुबई सत्संग का एक अंश।
जयगुरुदेव प्यारे साहेब सखी री कोई तिलक लगावो आओ सखी कोई चौक पुरावो सब…