जयगुरुदेव।

आप स्वयं को जानो और पहचानो कि आप कौन हो और यहाँ क्या कर रहे हो। क्यों जी रहे हो और क्यों मर रहे हो। क्यों रो रहे हो, क्यों तड़प रहे हो। यदि आप को इसका बोध नहीं है तो संतों और उन महापुरुषों को खोजो, जिन्हें इसका बोध हो। वही आपको आपकी वास्तविक हैसियत का बोध करा सकेंगे। वरना आप स्वयं को कभी भी न जान सकोगे।
आप प्रभु की चेतना हो, उसीका एक अंश हो, जो इस निचले जगत के स्थूल शरीर रूपी जेलों में बन्द है। इस समय आप मनुष्य देह में हो। ये मानव शरीर दुर्लभ है। बार-बार नहीं मिलेगा। बात को समझो।
यह मृत्युलोक मण्डल है, जहाँ आप हो। यह काल का देश है, ईश्वर का देश है। वैसे तो समूची रचना का प्रत्यक्ष और परोक्ष मालिक प्रभु ही है, पर यहाँ आपके पिता का यानि प्रभु का प्रत्यक्ष राज नहीं चलता। यह निचली रचना निरंजन पुरुष के अधीन है, जिन्हें ईश्वर, काल या समय कहा जाता है।
पर निरंजन पुरुष भी अनादि काल से स्वयं उस प्रभु के भजन में ही लीन हैं, समाधिस्थ हैं। वो भी उसे ही पाने के लिये व्याकुल हैं, जो उनका, हमारा, हम सबका सार है। मूल है। भजन पर बैठने से पूर्व उनके दिये गये आदेश से इस निचली रचना की कमान उनकी अर्ध्य चेतना आद्यामहाशक्ति के हाथों में है। जो ब्रह्मा, विष्णु, महेश और उनके नीचे ९ करोड़ दुर्गा और १० करोड़ शम्भु सहित ३३ कोटि अधिकारियों यानि दैविक शक्तियों द्वारा कर्मों के क़ानून से अप्रत्यक्ष रूप से राज कर रही हैं। आपके अनगिनत पुण्य कर्मों के प्रताप से आपको यह मनुष्य शरीर प्राप्त हुआ है। इसे आसान मत समझ लेना। मानव देह में जीवात्मा सहस्त्रार चक्र यानि अंतिम चक्र के ठीक नीचे,आज्ञा चक्र पर विराजती है। यहाँ से स्व का बोध यानि जागरण बेहद सरल है, अति सुगम है। सिर्फ़ नाम को पकड़ कर आप जीते जी अपने घर, अपने धाम लौट सकते हो। इससे सुगम कभी भी, कोई तकनीक न थी। इस ख़ास मौक़े का फ़ायदा उठा लो। इस शरीर में रहते हुये यानि जीते जी अपनी आत्मा को जगा लो और प्रभु को प्राप्त कर लो। अन्यथा सनद रहे कि मरने के बाद कर्मानुसार सिर्फ़ एक नयी देह के सिवा कुछ न मिलेगा। और आप ख़ाली हाथ ही रह जाओगे।
आप जीवित रहते हुये ऐसे साधू महात्माओं को खोज लो, जो ऊपर का भेद जानते हैं, असली रहस्य पहचानते हैं। जो प्रभु को प्राप्त करके उसमें समाहित हो चुका हैं। या प्रभु की अनुकंपा से ही नीचे उतरे हैं। जो ऊपर के लोकों में आते जाते हों। जिनकी दृष्टि खुली हो। जो पढ़ी-लिखी या कही-सुनी नहीं, दिव्य दृष्टि से “आखन देखी” कहते हों। उनसे अपने असली परिचय की युक्ति सीख लो। मार्ग जान लो। यदि आपको वो पवित्र तकनीक, विशिष्ट मार्ग मिल जाये तो आपका जीवन सफल हो जाये। इसलिये समय व्यर्थ मत करो, वरना ८४ लाख प्रकार की जेलों में ठूँस दिये जाओगे।
ध्यान रखना, संत तो दाता हैं, दयाल हैं। वो आपके पास कुछ लेने नहीं, सिर्फ़ देने आते हैं। और आपके पास अपना है ही क्या जो उन्हें दे सकोगे। जो आपका है ही नहीं उसे वो आपसे ले कैसे सकेंगे। और वो पराया माल लेकर उसे जायेंगे कहाँ। इसलिये महापुरुषों पर शक़ मत करो, सन्देह मत करो, अन्यथा आप इस अनमोल अवसर को पाकर भी गँवा दोगे।
प्रणाम।
जयगुरुदेव।

परम पूज्य सदगुरु श्री के मेलबर्न सत्संग का एक अंश।




  • जय सदगुरुश्री भगवान
    लाखों प्रणाम।
    🙏🏻🌸
  • जय सदगुरुश्री परमात्मा।
    आपकी सदा जय हो।
    आपको कोटि कोटि प्रणाम।
    जयगुरुदेव।
    🙏🏻🌺🌹
  • जय सदगुरुश्री सरकार।
    चरणों में प्रणाम।
    जयगुरुदेव।
    🙏🏻
  • Jai Gurudev🌺💕🙏🏻
  • Jaigurudev 🙏🙏

Leave a comment