।।जयगुरुदेव।।
कौन है सदगुरु
कभी आपने सोचा है कि सदगुरु है क्या? है कौन ये? सदगुरु का आपके जीवन में काम क्या है? निश्चित रूप से आपने ये सब कभी सोचा ही नहीं होगा। आप अपने लिए ज़रूरी बातों से अक्सर ऐसे ही अनजान रहते हो। बेकार की बातें, निरर्थक विचार आपके मन मस्तिष्क में कब्ज़ा जमाये रहते है। पर वो विचार नहीं आते जो ज़रूरी हैं आपके लिये। गुरु हमारा मूल है। बेस है। आधार है। गुरु न हो तो आपका कोई वज़ूद संभव ही नहीं है। नामुमकिन है।
गुरु को ज्योतिषी मत समझ लेना। वो सितारों की चाल पढ़ने वाला नजूमी नहीं है। वो तो उन चाँद सितारों का रचयिता है, नियंता है। जिसकी जुंबिश से ये चंदा तारे थिरकते हैं। सदगुरु अध्यापक नहीं है। वो तो स्वयं में ज्ञान का स्रोत है। उसके आभामंडल की हर तरंगों ज्ञान- विज्ञान स्वमेव प्रकट होता है। गुरु समस्या समाधान करने वाला सलाहकार भी नहीं है। बल्कि उससे पूर्ण रूप से जुड़ जाने पर समस्त समस्याएं स्वमेव लुप्त हो जाती हैं। नष्ट हो जाती हैं। मिट जाती है। जैसे सूरज आगे अंधेरे वजूद फ़ना हो जाता है।
आप धरती पर गुरुत्व शक्ति से चलायमान हो..। सदगुरु की ही उर्जा से गतिशील हो.. जिसे आप ग्रेविटी कहते हो, समझते हो, वही तो आपके गुरु की ताक़त है, जो आपको पल पल सम्हाले हुई है, हर पल थामे हुई है. अगर आपका गुरु और उसकी उर्जा आपके साथ ना होते तो आप कहीं ना होते, कहीं के भी ना होते ना होते.. आपका तब ना तो स्वयं पर ना ही खुद की गति पर ही कोई नियंत्रण होता.. जीवन होके भी ना होता..। सोचो कितनी महान है गुरु कृपा.. और आप हो कि आपको इतनी बड़ी घटना का कोई बोध ही नही है, अहसास ही नही है. आभास ही नही है.. समूची रचना सिर्फ़ गुरु की जिस उर्जा से संचालित है, उसे शब्द कहते हैं. कहीं कहीं इसे ही नाद कहा गया.. कोई इसे ध्वनि भी कहता है. बाइबिल इसे ही वर्ड कहती है।
शब्द ही समूचे विस्तार का आधार है, बुनियाद है, नींव है। जब उपर चढ़ोगे, झंझरीदीप से परे, सहसदल कंवल से आगे, नभ यानी पहला सुन्न, फिर उसके आगे गगन, फिर त्रिकुटी और गुरुपद के उपर, दसवें दरवाज़े से परे, मानसरोवर पर सारे बंधन त्याग कर सुन्न और महा सुन्न से रोटेटिंग केव.. की ओर, महा समय की तरफ तो पाओगे कि वहाँ शब्द ही शक्ति है, शब्द ही ताक़त है, शब्द ही उर्जा है..। शब्द ही सबकुछ है..। और जब कनेक्ट होगे, अपने सार से, अपने सत्त से, तो पाओगे कि उसका नूर भी शब्द है, नाद है.. प्रभु शब्द है, सिर्फ़ शब्द है..। लेकिन उस शब्द को तुम तब तक जान ना सकोगे जब तक तुम शब्द को पा ना लोगे.. प्राप्त ना कर लोगे.. उसमें भींग ना जाओगे, सराबोर ना हो जाओगे, तब तक तुम्हे ये सारी बातें समझ में ना आएँगी.. थोड़ा अभ्यास करना होगा, प्रयास करना होगा, कोशिश करनी होगी.. यही कोशिश भजन कहलाती है..। भज + श्रवण.. यानी सुमिरन और श्रवण.. सुमीर कर सुनो.. यानि सिर्फ़ मतलब की धुनें सुनो…. और थामे रहो सदगुरु को..। वरना खो जाओगे नाद में, शब्द में, शब्दों के प्रपात में।
।।जयगुरुदेव।।
परम पूज्य सदगुरु श्री के दुबई सत्संग का एक अंश।
- Jai guru Dev
- Jaigurudev 🙏🙏🌺