मैंने सदगुरुश्री को नहीं जानती थी। पापा से थोड़ा बहुत सुना था उनके बारे में। १०-११ दिन पहले उनका पालधी जलगांव में सिर्फ़ एक बार दर्शन किया था।जहाँ मैं किसी से मिलने गयी थी। पता चला की बाबा जयगुरुदेव जी के शिष्य हैं, तो चली गयी। पर उन्हें देखते ही उनके लिए बड़ा गहरा लगाव हो गया। लगा कि गुरु महाराज और उनकी मौज उन्ही में समाईं हुई है। उनके रोम रोम से तरंगें प्रस्फुटित हो रहीं थीं। ग़ज़ब का नूर था चेहरे पर। जब उनसे आँख मिली तो लगा जैसे साक्षात बाबा जयगुरुदेव जी महाराज के ही नयन है। कोई फरक नहीं था।
बाबा जयगुरुदेव जी महाराज से मेरा परिवार बचपन से जुड़ा हुआ था। जब मालिक ने सदगुरुश्री की आँख खोली थी मुम्बई के शेखावत जी के घर में तो मेरे पापा भी वहीं थे। उनको कुछ कुछ पता था इस बारे में। पर ज़्यादा नहीं। जब मेरी पहली बार आँखे मिली सदगुरुश्री तो लगा जैसे वो सब समझ गए।
मेरे मन में कुछ सवाल था। मेर२० साल का बेटा अपने दोस्तों के साथ बाइक से कश्मीर जाना चाहता था। पर मेरा मन घबरा रहा था। मैंने ह्रदय में सदगुरुश्री से गुहार लगायी कि मालिक तो दिखते नहीं, आप ही मालिक जैसे नज़र आते हो। क्या मेरे बेटे की रक्षा करोगे? मेरा इतना कहना ही था कि उन्होंने आँखों से हां में इशारा किया। पर मेरा मन फिर भी शांत नहीं हुआ। मैं लाइन तोड़ के आगे गयी और उन्हें देख कर फिर से ह्रदय में यही अर्ज़ लगाई। इस बार नज़र पड़ते ही वो मुस्कुरा दिए। पर मेरा मन नहीं माना। बड़ा अच्छा और गहरा सत्संग था। अदभुत। सिर्फ़ गुरु महाराज की ही बात की। दूसरा कुछ भी नहीं। मैं सत्संग के बाद स्टेज पर इनके दर्शन के लिए गई और वहाँ भी यही विनती की। इस बार वो आँख से नहीं मुँह से बोले। ज़ोर से बोले एक ही बात बार बार क्यों करती हो। सुन लिया न। मैं सकपका गयी।
बेटा चला गया। मैंने Whatsapp पर बेटे को सदगुरुश्री महाराज की तस्वीर भेजी। सुबह भजन पर लगा कि स्वामी जी कह रहे हैं कि बेटी जब तक मैं नज़र नहीं आता तब तक तेरी रक्षा मेरा यही बच्चा करेगा। मैंने ही इसका नया नाम सदगुरु रखा है। तू नहीं जानती कि ये कौन है। इसके पीछे मैं ही हूँ। मैं इसीके पीछे आऊँगा। शक मत करना। शक का काम अच्छा नहीं है। बाक़ी उनके पीछे मत भागना जो मेरा रूप बनाए बैठे हैं। मैंने कहा कि मालिक मेरा बेटा बाइक से जाने की ज़िद कर रहा है। रक्षा करना। तो गुरु महाराज ने कहा कि तूने उससे कह दिया तो समझो मुझसे कह दिया। मैं चौंक करके उठ गयी। कुछ समझ नहीं आया।
बेटा चला गया। सब ठीक चल रहा था। अचानक कल रात में मेरे बेटे का फ़ोन आया। मैं काँप उठी क्योंकि वो ज़ोर ज़ोर से रो रहा था। बोला मम्मी मैं जंगल में हूं। सब दोस्त आगे निकल गए। मेरी बाइक बंद हो गयी। स्टार्ट नहीं हो रही है। मेरा पर्स लगता है कि कहीं गिर गया। मोबाइल की बैटरी भी ख़त्म हो रही है क्या करूँ। बहुत डर लग रहा है। भगवान से कहो कि मुझे बचा ले।
इतना सुनते ही मेरा रोम रोम सिहर गया। कलेजा बैठ गया। लगा कि मेरा ह्रदय बंद हो जाएगा। मैंने गुरु महाराज को पुकारा। उन्हें पुकारते ही सदगुरुजी का चेहरा सामने आया। मैं उनसे लड़ पड़ी कि आपने तो कहा था एक ही बात बार बार क्या करती हो। सुन लिया न। क्या ख़ाक सुना था।
बहुत ग़ुस्सा भी आ रहा था। मैं उनसे बात करना चाहती थी। एक दो लोगों को फ़ोन किया। किसीको उनका नंबर पता नहीं था। किसी ने कहा कि Facebook पर खोजो। बेटी ने भी अपने account से उनको खोजा। उसने मेरा Facebook account बनाया। उनको मैसेंजर पर मैसेज लिखा। दस पंद्रह मिनट के बाद आशीर्वाद मुद्रा में उनका हाथ आ गया। पर कोई जवाब नहीं मिला।
बेटे को फ़ोन लगाया तो फ़ोन बंद था। आत्मा जार जार रोने लगी। ब्लड प्रेशर बढ़ गया। सब तरफ़ अँधेरा लग रहा था। पति आए नहीं थे। हम माँ बेटी फूट फूट कर रो रहे थे।
क़रीब सवा-डेढ़ घंटे बाद फ़ोन की घंटी बजी। अनजान नम्बर था। झपट कर फ़ोन उठा लिया। दूसरी तरफ़ बेटा था। उसकी आवाज़ काँप रही थी। बोला मम्मी मैं बिलकुल ठीक हूँ। शहर में आ गया हूँ। जहां रुकना था वहाँ पहुँच गया हूँ। सब मिल गए। पर क्या बताऊँ… कह के रोने लगा। मैं और डर गयी। बोली क्या हुआ।
बोला सुनसान रोड पर अकेला खड़ा था। ज़ोर ज़ोर से रो रहा था। तो पता नहीं कहाँ से एक लंबी सफ़ेद दाढ़ी वाला सरदार जी जैसा एक आदमी आया। सफ़ेद शॉल ओढ़े था वो। उसके गले में एक पोटली लटकी थी। बोला क्या हुआ पुत्तर जी। मैंने कहा कि गाड़ी बंद हो गयी है। मेरे दोस्त आगे निकल गए। उसने मेरे सर पर हाथ रखा। चुप कराया। फिर उसने बाइक को दो चार किक मारी। कुछ न हुआ तो नीचे झुक कर देखने लगा। एक मिनट में झटके से खड़ा हुआ और बड़ी ज़ोर से ऐसे किक मारी कि लगा गाड़ी टूट जाएगी। पर चमत्कार हो गया। गाड़ी ढुर्र ढुर्र करके स्टार्ट हो गयी। फिर बोला कि अपनी माँ को बता देना कि तुम ठीक हो। वो चिंता कर रही होगी। मुझे कुछ समझ नहीं आया। मैंने उनके पैर छू लिए। उन्होंने आशीर्वाद दिया। फिर आगे बढ़ गए। मेरा पूरा शरीर सूखे पत्ते की तरह काँप रहा था। फिर उन्होंने पीछे से आवाज़ दी कि पुत्तर जी, ये पर्स तेरा है क्या? पीछे मोड़ पर गिरा था। मैं सिहर गया। वो मेरा ही वॉलेट था। मैं सरदार जी को ग़ौर से देखा तो वो कुछ पहचाने हुए से लगे।
मैं जल्दी जल्दी में उन्हें धन्यवाद देना ही भूल गया।
मैं ख़ुशी के मारे ज़ोर ज़ोर से रो पड़ी। मालिक को और सदगुरुश्री को धन्यवाद दिया। अभी ठीक से बैठी ही थी कि बेटे का फिर से फ़ोन आया। इस बार उसने अपने मोबाइल से फ़ोन किया था। कुछ ठीक से बोल नहीं पा रहा था। उसकी आवाज़ काँप रही थी। फिर धीरे धीरे संभल कर बोला कि माँ मैंने अभी फ़ोन चार्ज करके चालू किया तो आपका पुराना Whatsapp देखा। तुम्हारा Whatsapp मैसेज था। तुमने एक बाबा जी की फ़ोटो भेजी थी। स्वामी जी की तरह लग रहे हैं जो। मैंने कहा कि हां वो सदगुरुजी हैं। … वो कांपते हुए बोला कि वो जो सरदार जी मदद के लिए आए थे न …. वो जो मदद के लिए आए थे न … मैंने कहा हाँ बोलो बोलो… वो बोला- कि मम्मी, वो तो वही थे बाबाजी… सदगुरु…। एकदम वही चेहरा। बिलकुल वही। फ़ोटो में उनके गले में जो पोटली दिख रही है, वो भी वही थी। और इतना कहके सुबकने लगा। मैं स्तब्ध थी। अवाक। मेरा गला भर गया। मैंने कहा हे सदगुरु मेरी भूल के लिए मुझे माफ़ कर दे। तू तो बड़ा दयालु है। तुझमें ही मेरे गुरु महाराज छुपे हैं। अभी जब मैं ये लिख रही हूँ, मेरी दोनों आँखें झील की तरह बह रही हैं और मेरा गला भरा हुआ है। तू बड़ा दयालु है मेरे मालिक। न जाने कौन सा रूप बनाए बैठा है। मैं पहचान गयी तुझे। इससे ज़्यादा मैं कुछ नहीं कह सकती। किसी के पास सदगुरुश्री का नम्बर हो तो मुझे भेज दे प्लीज़। जयगुरुदेव।
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- जय सदगुरुश्री भगवान।
🙏🏻🌺🙏🏻 - गला भर गया ये सब सुन के।
अब उम्मीद है कि मालिक जल्दी आयेंगे।
जयगुरुदेव। - जय सदगुरुश्री।🙏🏻🙏🏻🙏🏻
- पढ़ के आँख भर गयी।
गुरु महाराज की याद आ रही है। सदगुरुश्री बाबा पर मालिक की पूर्ण दया है।
जयगुरुदेव नाम प्रभु का। - Jai Jai Prabhu tum anterami 💕🌺🙏🏻