जो स्वयं से नही दूसरों से रूठता है, अकड़ता, नाराज़ होता है, बाहरी जग…त और लोगों की गतिविधियों व हरकतों से प्रभावित होता है, वो नादान मन के वशीभूत है। इसका अर्थ है कि उसकी यात्रा की दिशा बाहर की ओर है। अब वो अपने भीतर कैसे जा सकेगा? बिना दिशा बदले वो अपने अंदर विराजमान प्रभु को कैसे पा सकेगा?
वह तो अनजाने में एक और जीवन व्यर्थ कर देने पर आमादा है।
-परम पूज्य सदगुरुश्री.. See More
